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Thursday, July 11, 2013

Last dialogue from Raanjhanaa..

Last dialogue from Raanjhanaa..
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बस... इतनी ही कहानी थी मेरी
एक लड़की थी जो बगल में बैठी थी,
कुछ डॉक्टर थे अभीभी इस उम्मीद में थे की शायद मुर्दा फिर से चल पड़े।
एक दोस्त था जो पागल था ,
एक और लड़की थी , जिसने अपना सब कुछ हार दिया था मुझपे ,
मेरी माँ थी मेरा बाप था , बनारस की गलिया थी ,
और ये एक हमारा शरीर था जो हमें छोड़ चूका था ।
और ये एक हमारा सीना था , जिसमे अभी भी आग बाकी थी,
हम उठ सकते थे , पर किसके लिए , हम चिक सकते थे,पर किसके लिए ।
मेरा प्यार झोया, बनारस की गलिया , बिंदिया , मुरारी ,
सब मुझसे छुट रहा था,पर रख भी किसके लिए लेते ।
मेरे सीने की आग या मुझे जिन्दा कर सकती थी या फिर मुझे मार  सकती थी ।
पर साला अब उठे कौन , कौन फिर से मेहनत करे दिल लगाने को दिल तुडवाने को ,
अब कोई तो आवाज देके रोकलो...।
ये लड़की जो मुर्दा सी आँखे ले बैठी है बगल में ,
आज भी हाँ बोल दे तो , महादेव की कसम वापस आजाये ,
पर नहीं , अब साला मुड नहीं , आँखे मुंद लेने में ही सुख है , सो जाने में ही भलाई है ।
पर उठेंगे किसी रोज , उसी गंगा किनारे डमरू बजाने को,
उन्ही गलियों में दौड़ जाने को , किसी झोया के इश्क में पड़ जाने को ।

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