उन्हें शिकायत है
बार बार गिर कर भी
मेरे उठ खड़े होने से
तेज़ दर्द में भी मुस्कुराने से
कंगाल हो के भी शाहों से जुबां लड़ाने से
इश्वर के अलावा किसी को भी मालिक न मानने से
मेरे खुद को मिटाने और बनाने से
हाँ और
मेरे अनगिन सपनों से ....
उन्हें शिकायत है
मेरी रीढ़ से
मेरी सत्य की
बार बार गिर कर भी
मेरे उठ खड़े होने से
तेज़ दर्द में भी मुस्कुराने से
कंगाल हो के भी शाहों से जुबां लड़ाने से
इश्वर के अलावा किसी को भी मालिक न मानने से
मेरे खुद को मिटाने और बनाने से
हाँ और
मेरे अनगिन सपनों से ....
उन्हें शिकायत है
मेरी रीढ़ से
मेरी सत्य की
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