मैं reg. no 2007BIT057 collage के गेट से बाहर देखता हूँ |
दिन महीने सालों को युग में बदलते देखता हूँ |
यह बारिश मेरे सावन के झूलों को संग संग लाती है|
यह सर्दी मेरी लोरी की आग सेक कर जाती है |
मैं reg. no 2007BIT057 collage के गेट से बाहर देखता हूँ |
सपनो के गाँव से उतरी,
एक नन्ही परी को देख ता हूँ |
केहती है खूद को जी. एस. और मुझे दोस्त बुलाती है|
है बिलकुल बेगानी पर अपनों सी जिद वों करती है |
उसकी सच्ची बातो से फिर lecture करने को मनं करता है |
उसकी कसमो वादों से कुछ करने को मनं करता है |
nice one......
ReplyDeletewonderful think...............
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